नई दिल्ली। कृषि कानूनों का विरोध करने वाले किसानों ने एक साल तक दिल्ली सीमा पर आंदोलन करके सरकार को झुकने को मजबूर कर दिया। सरकार जिस जोश में ये कृषि कानून लायी थी, किसानों ने उसी जोश से उनका विरोध किया और एक साल तक लगातार प्रदर्शन करके यह दिखा दिया कि वे किसी भी तरह सरकर के सामने झुकने वाले नहीं हैं। इसके बाद सरकार ने एक माह में कानून वापस भी ले लिये हैं और किसानों से उनकी पांच प्रमुख मांगों को पूरा करने का वादा भी किया है। इसके बाद किसानों नेअपना आंदोलन स्थगित करके दिल्ली सीमा से अपना डेरा हटाते हुए घरों को लौट गये। घर वापसी पर किसानों का वीरों की भांति पुष्प वर्षा करके स्वागत किया गया। जाते जाते किसानों ने सरकार को यह चेतावनी भी दी है कि यदि जरूरत पड़ी ते वह फिर दिल्ली सीमा पर आकर आंदोलन कर सकते हैं।
कृषि कानून बनते ही शुरू हो गया था विरोध
किसानों का आंदोलन सितम्बर 2020 में उस समय शुरू हो गया था जब सरकार ने कृषि कानूनों को संसद से पारित करवा कर और राष्टÑपति से हस्ताक्षर कराकर लागू करने का ऐलान किया था। उसके बाद से लगातार दिल्ली के पंजाब-हरियाणा बार्डर के सिंघू बॉर्डर और शम्भू बॉर्डर पर किसानों डेरा डालकरअपना प्रदर्शन शुरू कर दिया था वहीं उत्तर प्रदेश की ओर से गाजीपुर बॉर्डर से भाकियू सहित अनेक किसान संगठनों ने आंदोलन शुरू कर दिया था। 26 जनवरी के दिल्ली के लालकिला पर जोरदार प्रदर्शन के बाद आंदोलन की धार कुंद पड़ गयी थी और आंदोलन समाप्ति की ओर चल दिया था।ये भी पढ़ें: कृषि कानूनों के विरोध को थामने की तैयारी
राकेश टिकैत के आंसुओं ने आंदोलन में जान फूंक दी
उसी समय उत्तर प्रदेश सरकार के आदेश से गाजियाबाद जिला प्रशासन ने जब गाजीपुर बॉर्डर से आंदोलनकारी किसानों को हटाने का प्रयास किया तो भाकियू के राष्ट्रीय प्रवक्ता राकेश टिकैत ने आंसू बहाकर आंदोलन को नये सिरे से खड़ा कर दिया। राकेश टिकैत को किसानों का भावनात्मक समर्थन मिलने के बाद सरकार का पक्ष कमजोर हो गया।सरकार की सारी कोशिशें रहीं नाकाम
इस दरम्यन सरकार ने किसानों को कृषि कानूनों की अच्छाइयों का प्रचार करना जारी रखा और लोगों को खूब समझाने की कोशिश की। इस बीच आंदोलनकारी किसानों ने स्पष्ट कर दिया कि वे कृषि कानूनों की वापसी से कम पर कोई बात नहीं मानेंगे। इस दौरान सरकार की ओर से किसानों को मनाने के लिए कई दौर की वार्ताएं हुर्इं लेकिन कोई बात नहीं बनी।सरकार और किसानों के बीच शुरू हुई चुनावी जंग
इसके बाद किसानों और सरकार के बीच चुनावी जंग शुरू हो गयी। कई राज्यों में भाजपा की चुनावी हार के बाद सरकार को समझ में आया कि किसानों से तकरार से कोई फायदा नहीं होने वाला बल्कि नुकसान बढ़ने वाला है।सियासी नुकसान देख सरकार को झुकना पड़
जब उत्तर प्रदेश सहित पांच राज्यों की विधानसभा चुनाव की तैयारियां शुरू होने लगी तो सरकार को अपनी ही पार्टी की संभावित हार नजर आने लगी तब सरकार ने मंथन करके गुरुनानक जयंती के अवसर पर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने राष्ट्रीय को संबोधित करते हुए कृषि कानूनों की वापसी का ऐलान किया। लेकिन किसान संगठनों ने उनकी इस बात पर विश्वास नहीं किया बल्कि कहा कि जब तक सरकार कानून वापस नहीं ले लेती तब तक आंदोलन जारी रखा जायेगा।ये भी पढ़ें: तीनों कृषि कानून वापस लेने का ऐलान,पीएम ने किसानों को दिया बड़ा तोहफा
जितनी तेजी से कानून बने थे, उतनी तेजी से कानून वापस भी लिये गये
इसके बाद संसद के शीतकालीन सत्र में सरकार ने तीनों कृषि कानूनों को वापस लेने की प्रक्रिया पूरी की और राष्ट्रपति की मुहर लगने के बाद जब ये कानून वापस हो गये तो किसान संगठनों के तेवर ढीले पड़ गये और उसके बाद भी वो आंदोलन वापस लेने को तैयार नही हुए और अपनी पांच प्रमुख मांगों पर सरकार से लिखित आश्वासन देने की मांग उठा दी।सरकार को पांच मांगें भी माननी पड़ीं
सरकार की ओर से जब किसान संगठनों के संयुक्त किसानमोचा को लिखित रूप से किसानों की सभी पांचों प्रमुख मांगों को स्वीकार करने का लिखित आश्वासन दिया तब आंदोलनकारी किसानों ने शनिवार यानी 11 दिसम्बर से सिंघू बार्डर से अपने तम्बू हटाये और अपने घर की वापसी की। उसके बाद गाजीपुर बॉर्डर से भी तम्बू हटे और अब वहां से आंदोलनकारी किसान अपने घरों को लौट गये हैं।किसानों ने 15 जनवरी तक का दिया है अल्टीमेटम
संयुक्त किसान मोर्चा के नेताओं ने कहा कि आगामी 15 जनवरी को किसानों की बैठक होगी जिसमें समीक्षा की जायेगी कि सरकर ने यदि लिखित आश्वासन के बाद वादा पूर नहीं किया तो फिर आंदोलन करेंगे।किसानों का फूलों की वर्षा करके किया स्वागत
गाजीपुर बॉर्डर से पश्चिमी उत्तरप्रदेश स्थित अपने घरों की वापसी के समय भाकियू नेता राकेश टिकैत सहित किसानों का फूलों की वर्षा करके स्वागत किय गया । पंजाब और हरियाणा के किसानों की घर वापसी के समय एक एनआरआई ने विमान को किराये पर लेकर उससे पुष्प वर्षा कर किसानों क स्वागत किया।ये भी पढ़ें: नए नहीं कृषि कानून: प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी
वापसी से पहले किसानों ने अरदास की और मिठाई बांटी
आंदोलन को स्थगित करने के ऐलान के साथ ही किसानोंं ने शंभु बॉर्डर, सिंघू बॉर्डर और गाजीपुर बॉर्डर से अपने तम्बू हटाये उससे पहले अरदास की उसके बाद अपना डेरा समेट कर घरवापसी की। आंदोलन में अपनी जीत मानने वाले किसानों ने घर वापसी के दौरान मिठाई बांट कर जीत का जश्न मनाया।वे कौन सी मांगें मानने के बाद किसान घरों को लौटे
किसान नेताओं ने यह जानकारी देते हुए बताया कि केन्द्र सरकार की ओर से कृषि सचिव संजय अग्रवाल के हस्ताक्षर वाली एक चिटठी मिली है। इस चिटठी में यह बताया गया है कि सरकार ने किसान संगठनों की पांंच प्रमुख मांगों पर अपनी सहमति जताई है। ये मांगे इस प्रकार हैं:-
- एमएसपी के बारे में केन्द्र सरकार ने आश्वासन दिया है कि वह इस मुद्दे पर एक किसान कमेटी बनाएगी, जिसमें संयुक्त किसानमोर्चा के प्रतिनिधिलिये जायेंगे, जिन फसलों पर एमएसपी मिल रहा है वो जारी रहेगा।
- किसानों के मुकदमें होंगे वापस, इस मुद्दे पर यूपी, उत्तरखंड और हरियाणा की सरकार ने किसानों पर दर्ज मुकदमों को वापस लिये जाने पर सहमति जताई है। इसके अलावा दिल्ली, रेलवे और अन्य प्रदेश भी किसानों पर दर्ज मुकदमें वापस लेंगे।
- यूपी और हरियाणा सरकार में भी इस बात पर सहमति बन गयी है कि जिस प्रकार पंजाब किसानों को पांच लाख रुपये का मुआवजा देती है उसी प्रकार इन दोनों राज्यों की सरकार भी मुआवजा देंगी।
- किसानों के बिजली के बिल पर भी विचार किया जायेगा। किसानों को प्रभावित करने वाले प्रावधानों पर पहले सभी पक्षों के साथ चर्चा की जायेगी और उसके बाद किसान मोचा से वार्ता करके ही संसद में बिल पेश किया जायेगा।
- पराली को जलाने के मामले में केन्द्र सरकार ने जो कानून पारित किये हें, उसकी धारा 14 और 15 में आपराधिक जिम्मेदारी से किसानों को मुक्त किया जायेगा।
किसानों की जीत के मायने
किसानों ने अपनी मांगें मनवा कर कृषि कानून मुद्दे पर जीत दर्ज कर ली है। किसानों ने एक तरह से देश के समक्ष यह उदाहरण पेश किया है कि सरकार से बड़ी जनता की ताकत होती है। सरकार किसी तरह के कानून जनता पर थोप नहीं सकती बल्कि जनता चाहे तो सरकार को झुकने को मजबूर कर सकती है।